‘हैदराबाद का ओवैसी वो, बंगाल का मैं’ – हुमायूं कबीर के बयान से बंगाल की सियासत में बवंडर
कबीर ने दावा किया कि उनकी नई
पार्टी आने वाले विधानसभा चुनाव में गेमचेंजर साबित होगी और वे राज्य की 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे।
बाबरी मस्जिद की प्रतिकृति के कार्यक्रम के बाद निलंबन
मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद की प्रतिकृति निर्माण की आधारशिला रखने के बाद हुमायूं कबीर को तृणमूल कांग्रेस ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निलंबित कर दिया था। निलंबन के कुछ दिनों बाद उन्होंने राजनीतिक मैदान में अलग राह चुनने का ऐलान कर दिया।
नई पार्टी का गठन और ओवैसी से बातचीत का दावा
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कबीर ने कहा-
“मैंने असदुद्दीन ओवैसी से बात की है। वो हैदराबाद के ओवैसी हैं और मैं बंगाल का ओवैसी हूँ।”
उन्होंने बताया कि 12 दिसंबर को कोलकाता में लाखों समर्थकों की मौजूदगी में वे अपनी नई पार्टी का औपचारिक शुभारंभ करेंगे। कबीर ने दावा किया कि उनकी पार्टी राज्य के मुस्लिम समाज के अधिकारों और प्रतिनिधित्व के लिए काम करेगी।
हालांकि उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य तृणमूल के वोट बैंक को नुकसान पहुंचाना नहीं है, लेकिन बाद के बयानों ने इस दावे को कमजोर कर दिया।
‘तृणमूल का मुस्लिम वोट बैंक खत्म’ – कबीर का दावा
कबीर ने एक बयान में कहा-
“मैं 135 सीटों पर चुनाव लड़ूंगा। मेरी पार्टी ही चुनाव का गेमचेंजर होगी। तृणमूल का मुस्लिम वोट बैंक खत्म हो जाएगा।”
गौरतलब है कि बंगाल में लगभग 27% मुस्लिम आबादी है, जो अब तक तृणमूल कांग्रेस की बड़ी ताकत मानी जाती रही है। यही वजह है कि कबीर का दावा टीएमसी के लिए गंभीर चुनौती माना जा रहा है।
AIMIM से गठबंधन के संकेत
हुमायूं कबीर ने यह भी कहा कि वे AIMIM के संपर्क में हैं और संभव है कि ओवैसी की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ें।
हालांकि AIMIM या असदुद्दीन ओवैसी ने अब तक इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।
राजनीतिक हलचल तेज – टीएमसी की बढ़ी चिंता
कबीर के ऐलान के बाद राज्य की राजनीति में तेजी से हलचल बढ़ गई है। विश्लेषक मानते हैं कि यदि कबीर AIMIM से हाथ मिलाते हैं, तो यह मुस्लिम वोटों के बड़े हिस्से पर असर डाल सकता है। इसका सीधा लाभ विपक्षी दलों – खासकर बीजेपी और लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन – को मिल सकता है।
अब सबकी नजर इस बात पर है कि-
कबीर की नई पार्टी को जमीनी स्तर पर कितना समर्थन मिलता है?
क्या ओवैसी वास्तव में उनके साथ कदम मिलाकर चलेंगे?
और क्या यह कदम तृणमूल के मजबूत वोट बैंक को वास्तव में नुकसान पहुंचा पाएगा?
अभी इतना तय है कि हुमायूं कबीर के बयान और घोषणा ने बंगाल की सियासत में तेज हलचल मचा दी है।

