नई दिल्ली । भारतीय परंपरा में विवाह को केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं बल्कि सोलह संस्कारों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। यह वह आधारशिला है जिस पर एक व्यक्ति अपने जीवन के चार पुरुषार्थों धर्म अर्थ काम और मोक्ष को साधने के लिए गृहस्थ जीवन की शुरुआत करता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में विवाह की विधियाँ अलग हो सकती हैं लेकिन उनका मूल उद्देश्य जीवन को धार्मिक आध्यात्मिक और सामाजिक आधार प्रदान करना होता है। साल 2025 में भारतीय विवाह परंपरा के दो विशिष्ट स्वरूपों ने देश और विदेश दोनों जगह चर्चा का केंद्र बनकर इसकी गरिमा को एक बार फिर स्थापित किया। ये थे वैदिक विवाह और योगिक परंपरा से जुड़ा भूत शुद्धि विवाह।
वैदिक विवाह सनातन धर्म का मूल संस्कार
वैदिक विवाह हिंदू धर्म का सबसे पुराना और मूल विवाह संस्कार माना जाता है। इसका उल्लेख ऋग्वेद यजुर्वेद और अथर्ववेद जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। 2025 में कई हाई-प्रोफाइल और आम लोगों द्वारा इस पारंपरिक पद्धति को अपनाने से यह चर्चा में रहा। कई आधुनिक जोड़ों ने सादगी मंत्रों की महत्ता और विवाह के आध्यात्मिक उद्देश्य पर ज़ोर देने के लिए इसे चुना जिससे यह साबित हुआ कि सनातन संस्कृति आज भी प्रासंगिक है।
वैदिक विवाह की विशिष्ट परंपराएं
वैदिक विवाह की विशिष्ट परंपराएं
सप्तपदी और अग्नि साक्षी: इस विवाह का सबसे केंद्रीय अनुष्ठान सप्तपदी सात फेरे है जिसमें वर और वधू सात पवित्र वचन लेते हैं। ये फेरे पवित्र अग्नि अग्नि देवता को साक्षी मानकर लिए जाते हैं जिन्हें सभी अनुष्ठानों का शुद्धिकर्ता माना जाता है।मंत्रोच्चारण का महत्व विवाह के दौरान उच्चारित होने वाले प्रत्येक मंत्र का अपना विशिष्ट अर्थ होता है जो पति-पत्नी को उनके कर्तव्यों जीवन के लक्ष्य और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का बोध कराता है।उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य केवल संतानोत्पत्ति या सहजीवन नहीं बल्कि धर्म के मार्ग पर चलते हुए गृहस्थ जीवन की शुरुआत करना आपसी सहयोग से धर्म का पालन करना और उत्तम संतान की प्राप्ति माना गया है।
भूत शुद्धि विवाह: योगिक शुद्धिकरण की अनूठी रीत
साल 2025 में चर्चा में रहा एक अन्य विशिष्ट अनुष्ठान भूत शुद्धि विवाह है। यह योगिक परंपरा से जुड़ा एक ऐसा अनुष्ठान है जो वैवाहिक रिश्ते की शुरुआत से पहले स्वयं को पूर्ण रूप से शुद्ध करने पर ज़ोर देता है।भूत शुद्धि का अर्थ है पंचभूतों पृथ्वी जल अग्नि वायु और आकाश की शुद्धि। योगिक दर्शन के अनुसार हमारा शरीर इन्हीं पाँच तत्वों से बना है। इस विवाह पद्धति को चुनने वाले जोड़ों का मानना है कि रिश्ते की शुरुआत भौतिक इच्छाओं या सामाजिक दबाव से नहीं बल्कि आत्मिक और मौलिक शुद्धिकरण से होनी चाहिए।
भूत शुद्धि विवाह की ख़ास परंपराएं
पंचभूतों का अनुष्ठान: इस विधि में विशिष्ट मंत्रों मुद्राओं और अनुष्ठानों के माध्यम से शरीर के पंच तत्वों को शुद्ध किया जाता है। यह माना जाता है कि तत्वों के शुद्ध होने पर व्यक्ति अपने साथी के साथ केवल शारीरिक या मानसिक स्तर पर नहीं बल्कि ऊर्जा के स्तर पर भी जुड़ता है।आध्यात्मिक तैयारी: विवाह से पूर्व वर और वधू को कुछ विशिष्ट योगिक क्रियाओं और ध्यान में शामिल होना पड़ता है जो उन्हें रिश्ते की पवित्रता और गहराई को समझने के लिए तैयार करती हैं। गहन उद्देश्य यह विवाह शारीरिक और सामाजिक बंधन से ऊपर उठकर एक-दूसरे के आध्यात्मिक विकास में सहायक बनने पर केंद्रित होता है। इसका उद्देश्य गृहस्थ जीवन को मोक्ष की ओर ले जाने का एक माध्यम बनाना है।
साल 2025 के ये विशेष विवाह इस बात की पुष्टि करते हैं कि आधुनिकता की चकाचौंध में भी भारतीय संस्कृति की प्राचीन परंपराएं न केवल जीवित हैं बल्कि अपनी आध्यात्मिक गहराई और गहन उद्देश्य के कारण आज भी प्रासंगिक हैं। जहाँ वैदिक विवाह ने सनातन धर्म की मूल शक्ति को दर्शाया वहीं भूत शुद्धि विवाह ने विवाह में योग और आध्यात्म के समावेश का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया जिससे ये दोनों पद्धतियाँ साल भर चर्चा का विषय रहीं।

