इस पर्व की उत्पत्ति दूसरी सदी ईसा पूर्व की हैजब यहूदी लोगों ने सिरेस साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया। उस समय यहूदियों के मंदिर पर विदेशी हुकूमत का कब्ज़ा हो गया था और यहूदी धर्म के धार्मिक कृत्यों पर रोक लगा दी गई थी। मक्काबी विद्रोह के दौरान यहूदियों ने हेरोडियन और सिरीयन साम्राज्य के अधीन अपने मंदिर को वापस हासिल किया। मंदिर को फिर से शुद्ध करना और वहां पुनः पूजा करना यहूदियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था।
हनुक्का आठ दिनों तक इसलिए मनाया जाता है क्योंकि जब यहूदी मक्काबी युद्ध के बाद अपने मंदिर में लौटेतो उन्होंने तेल की कमी का सामना किया। मंदिर के मेनोराह दीपमाला में हमेशा प्रकाश जलता रहता थालेकिन उनके पास केवल एक दिन के लिए पर्याप्त शुद्ध तेल बचा था। चमत्कारिक रूप से यह तेल आठ दिनों तक जलता रहाजिससे यहूदियों को नया शुद्ध तेल तैयार करने का समय मिल गया। इस चमत्कारिक घटना के स्मरण में हनुक्का का उत्सव आठ दिनों तक मनाया जाता है।
हनुक्का के दौरान यहूदियों के घरों में मेनोराह या हनुक्कियाह सजाई जाती है। इसमें नौ दीयों का विशेष प्रबंध होता है आठ दिन के लिए हर दिन एक अतिरिक्त दीपक जलाया जाता है और नौवां दीपक जिसे ‘शमाश’ कहते हैंदूसरों को जलाने के लिए इस्तेमाल होता है। इस उत्सव में पारंपरिक भोजन जैसे लेट्टुसेस आलू के पकौड़े डॉनट्स और अन्य तेल में तली हुई चीज़ें बनाई जाती हैंजो मंदिर में तेल के चमत्कार का प्रतीक हैं।
हनुक्का का पर्व केवल धार्मिक आस्था तक ही सीमित नहीं है। यह यहूदी समुदाय के लिए एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है। इस दौरान परिवार और मित्र मिलकर हनुक्का गीत गाते हैंखेल खेलते हैं और बच्चों को गिफ्ट्स देते हैं। खासकर द्रेडेल नामक खेलजो छोटी घूमने वाली घूमती हुई वस्तु से खेला जाता हैइस पर्व की पहचान बन चुका है।
इतिहास में हनुक्का ने यहूदी लोगों को अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की प्रेरणा दी है। यह पर्व हमें संघर्ष के समय में आशा बनाए रखने और अपने विश्वास पर अडिग रहने की शिक्षा देता है। यही वजह है कि हनुक्का न केवल धार्मिक उत्सव बल्कि स्वतंत्रता और साहस का प्रतीक भी माना जाता है।
सन 2025 में हनुक्का 25 दिसंबर से शुरू होकर 1 जनवरी 2026 तक मनाया जाएगा। यह समय विशेष रूप से विश्वभर में यहूदी समुदाय के लिए उत्सवरोशनी और सौहार्द का प्रतीक है। हर घर में दीप जलाकर और पारंपरिक व्यंजन बनाकर यहूदी लोग अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोते हैं और आने वाली पीढ़ियों को इसे आगे बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं।
हनुक्का के इस पर्व से जुड़े संदेश आज भी प्रासंगिक हैं। यह हमें याद दिलाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और विश्वास के साथ आगे बढ़ना संभव है। यह पर्व यहूदियों की पहचानसाहस और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक हैजो दुनिया भर में उनके समुदाय और सांस्कृतिक मूल्यों को जोड़ता है। इस प्रकार हनुक्का केवल आठ दिनों की रोशनी का उत्सव नहीं हैबल्कि यह यहूदियों के संघर्षआस्था और चमत्कारिक विश्वास का जीवंत प्रतीक है। हर वर्ष यह पर्व हमें यह सिखाता है कि अंधकार चाहे कितना भी गहरा क्यों न होएक छोटी सी रोशनी भी आशा और जीत का मार्ग दिखा सकती है।

