नई दिल्ली
।न्यायपालिका की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सख्त रुख दिखाया है। बुधवार, 17 दिसंबर 2025, को एक अहम सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश CJI सूर्यकांत ने रिटायरमेंट से ठीक पहले कुछ न्यायिक अधिकारियों द्वारा पारित किए जा रहे विवादित आदेशों को लेकर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने इस प्रवृत्ति की तुलना क्रिकेट के आखिरी ओवर में लगाए जाने वाले छक्कों से करते हुए इसे न्याय व्यवस्था के लिए खतरनाक करार दिया।
यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है – CJI
।न्यायपालिका की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सख्त रुख दिखाया है। बुधवार, 17 दिसंबर 2025, को एक अहम सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश CJI सूर्यकांत ने रिटायरमेंट से ठीक पहले कुछ न्यायिक अधिकारियों द्वारा पारित किए जा रहे विवादित आदेशों को लेकर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने इस प्रवृत्ति की तुलना क्रिकेट के आखिरी ओवर में लगाए जाने वाले छक्कों से करते हुए इसे न्याय व्यवस्था के लिए खतरनाक करार दिया।
यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है – CJI
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी मध्य प्रदेश के एक जिला जज की याचिका पर सुनवाई के दौरान आई, जिन्हें रिटायरमेंट से महज 10 दिन पहले दो विवादित आदेश पारित करने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था। इस मामले की सुनवाई CJI सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल पंचोली की पीठ कर रही थी।
CJI ने टिप्पणी करते हुए कहा
CJI ने टिप्पणी करते हुए कहा
कुछ न्यायिक अधिकारी सेवानिवृत्ति से पहले ऐसे आदेश पारित करने लगते हैं मानो वे क्रिकेट मैच के आखिरी ओवर में छक्के मार रहे हों। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और चिंता का विषय है।
गलत आदेश बनाम बेईमानी – फर्क जरूरी
हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि हर गलत न्यायिक आदेश कदाचार नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में किसी जज को केवल इसलिए निलंबित नहीं किया जा सकता क्योंकि उसका आदेश गलत पाया गया हो, क्योंकि ऐसे आदेशों को अपील या उच्च अदालत के जरिए सुधारा जा सकता है।
लेकिन CJI ने एक अहम सवाल उठाया-
लेकिन CJI ने एक अहम सवाल उठाया-
अगर कोई आदेश स्पष्ट रूप से बेईमानी, पक्षपात या बाहरी हितों से प्रेरित हो, तो क्या उसे सिर्फ एक गलती माना जा सकता है? यही सवाल इस पूरे मामले का केंद्र रहा।
जज का पक्ष: बेदाग रिकॉर्ड का दावा
मध्य प्रदेश के संबंधित जिला जज 30 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले थे, लेकिन 19 नवंबर को उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के चलते राज्य में जजों की रिटायरमेंट उम्र 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई, जिससे उनका कार्यकाल एक साल और बढ़ गया। जज की ओर से सीनियर एडवोकेट विपिन सांघी ने दलील दी कि उनका पूरा सेवा रिकॉर्ड बेदाग रहा है और उन्हें हमेशा सकारात्मक वार्षिक मूल्यांकन मिले हैं। उन्होंने कहा कि सिर्फ न्यायिक आदेशों के आधार पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करना न्यायिक स्वतंत्रता के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट का संतुलित रुख
सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील से आंशिक सहमति जताई कि न्यायिक त्रुटि और कदाचार के बीच स्पष्ट अंतर होना चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने सीधे तौर पर याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया और जज को पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की सलाह दी।अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि निलंबन से जुड़ी जानकारियां RTI के जरिए मांगना उचित तरीका नहीं है, खासकर जब मामला वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी से जुड़ा हो। ऐसे मामलों में संस्थागत प्रक्रियाओं और अभ्यावेदन का सहारा लिया जाना चाहिए।
न्यायपालिका की साख पर बड़ा संदेश
CJI सूर्यकांत की यह टिप्पणी केवल एक मामले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे न्यायिक तंत्र के लिए एक स्पष्ट संदेश है। सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि न्यायिक स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन उसके साथ ईमानदारी और जवाबदेही भी उतनी ही अहम है।यह फैसला और टिप्पणी न्यायपालिका के भीतर आत्ममंथन की जरूरत को रेखांकित करती है। रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके न्यायिक अधिकारियों से अपेक्षा है कि वे अपने पद की गरिमा और निष्पक्षता को आखिरी दिन तक बनाए रखें, क्योंकि न्यायपालिका की साख किसी एक आदेश से भी प्रभावित हो सकती है।

