दरअसल, यह पूरा घोटाला कथित तौर पर चीनी नागरिकों द्वारा नियंत्रित कंपनी शिगू टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड ने चलाया था। बताया गया कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान इस गिरोह ने बड़ी मात्रा में पैसा इकट्ठा किया और उसे हेराफेरी कर विदेश भेज दिया। कुछ ही महीनों में 150 से ज्यादा फर्जी कंपनियों के बैंक खातों में 1000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जमा हो गई थी। ये खाते अपराध से कमाए धन को इकट्ठा करने और उसे वैध दिखाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे थे।
सीबीआई जांच में सामने आया है कि यह विदेशी नागरिकों द्वारा संचालित एक बड़े और सुनियोजित साइबर अपराध नेटवर्क का हिस्सा था। यही गिरोह कोविड के बाद के समय में कई अन्य घोटालों के लिए भी जिम्मेदार था, जिनमें फर्जी लोन ऐप, फर्जी निवेश स्कीम और फर्जी ऑनलाइन जॉब ऑफर के जरिए भारतीय नागरिकों को ठगा गया। जांच में पता चला कि ठगों ने लोगों का विश्वास जीतने के लिए शुरुआती निवेश पर कुछ रिटर्न भी दिए, लेकिन बाद में पूरी राशि क्रिप्टोकरेंसी में बदलकर विदेश भेज दी।
सीबीआई जांच में ये भी पता चला कि मुख्य आरोपी चीनी नागरिक वान जून की पहचान जिलियन कंसल्टेंट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (एक चीनी संस्था की सहायक कंपनी) के प्रमुख निदेशक के तौर पर हुई। उसने डॉर्टसे नामक एक व्यक्ति की मदद से शिगू टेक्नोलॉजी सहित कई शेल कंपनियां बनाईं। बाद में सीबीआई में डॉर्टसे को भी गिरफ्तार कर लिया था।
सीबीआई की चार्जशीट में मुख्य साजिशकर्ताओं समेत 27 व्यक्ति और 3 कंपनियों को जिम्मेदार ठहराया गया है। वहीं गिरोह के कई सदस्य अभी भी सीबीआई की पहुंच से बाहर हैं। फिलहाल उनकी तलाश और जांच जारी है। बता दें कि एजेंसी ने पिछले साल अप्रैल में इस मामले में FIR दर्ज की थी। इससे पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जांच शुरू की और विभिन्न बैंक खातों में जमा 91.6 करोड़ रुपये फ्रीज कर दिए थे।

